
pop Francis
पोप फ्रांसिस, जिनका असली नाम जॉर्ज मारियो बेर्गोलियो (Jorge Mario Bergoglio) है, दुनिया के सबसे बड़े ईसाई समुदाय “कैथोलिक चर्च” के पोप रहे हैं।
पोप फ्रांसिस आज पूरी दुनिया में शांति, प्रेम, भाईचारे और करुणा के सबसे बड़े प्रतीक माने जाते हैं। वे कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु और वेटिकन सिटी के प्रमुख रहे हैं। वे अपनी सादगी, करुणा और गरीबों के प्रति विशेष प्रेम के लिए जाने जाते हैं। पोप फ्रांसिस ने पूरी दुनिया में शांति, समानता और पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। उनकी सोच आधुनिक है, लेकिन उनकी आत्मा सादगी और सेवा की परंपरा में रची-बसी है।
पोप फ्रांसिस ने अपने जीवन से यह सिखाया है कि असली महानता, अमीर बनने में नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा करने में है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन
पोप फ्रांसिस का जन्म 17 दिसंबर 1936 को ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना में हुआ। उनका जन्म एक साधारण इटालियन मूल के मजदूर परिवार में हुआ था। उनके पिता मारियो जोस बेर्गोलियो रेलवे में काम करते थे और माता रेजिना सिवोरी गृहिणी थीं।
उनका परिवार इटली से अर्जेंटीना आया था, इसलिए उनके जीवन में यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी संस्कृतियों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। पोप फ्रांसिस बचपन से ही साधारण जीवन जीते थे और अपने परिवार से धार्मिकता, परिश्रम और सेवा की भावना को आत्मसात किया।
बचपन से ही वे परिवार की सादगी और धार्मिकता से जुड़े रहे। परिवार में ईश्वर के प्रति श्रद्धा और दूसरों की मदद करने का भाव कूट-कूटकर भरा था। यही संस्कार आगे चलकर उनके जीवन की नींव बने।
नोट: ईसाई परिवारों में बच्चों को बचपन से ही प्रार्थना करना, चर्च जाना और दूसरों की मदद करना सिखाया जाता है। हर रविवार को चर्च में जाकर सामूहिक प्रार्थना (Mass) करना एक प्रमुख परंपरा होती है।

शिक्षा और साधारण नौकरियाँ
पोप फ्रांसिस ने स्थानीय स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। वे पढ़ाई में सामान्य थे, लेकिन उनमें गहरी सोचने की अद्भुत क्षमता थी।
बचपन में उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ फुटबॉल खेलना और डांस करना भी पसंद था। परंतु उनके हृदय में कहीं न कहीं एक आंतरिक पुकार थी — सेवा करने की पुकार। उन्होंने धीरे-धीरे विज्ञान को छोड़कर धार्मिक जीवन की ओर रुख करना शुरू किया।
पोप फ्रांसिस (तब जॉर्ज बेर्गोलियो) ने रेस्टोरेंट में एक सफाईकर्मी और सर्वर के तौर पर काम किया था। साथ ही, उन्होंने एक समय पर रक्षक (Bouncer) के रूप में भी एक क्लब में काम किया था। इसके अलावा, वे एक रासायनिक प्रयोगशाला (chemical lab) में भी सहायक के तौर पर काम कर चुके हैं।
ये सारे काम उन्होंने अपने परिवार का खर्च चलाने और अपनी पढ़ाई के लिए पैसे इकट्ठा करने के लिए किए थे।
सादगी और सेवा का जीवन
पोप बनने के बाद भी उन्होंने वही साधारण जीवनशैली अपनाई। वे पोप बनने के बाद भी खुद अपने कपड़े धोते थे और बिना विशेष सुविधाओं के रहते थे। पोप बनने के बाद भी उन्होंने वेटिकन के आलीशान अपार्टमेंट में रहने से मना कर दिया और एक साधारण गेस्टहाउस (Domus Sanctae Marthae) में रहने का फैसला किया।
पोप फ्रांसिस हमेशा कहते थे:
“असली सेवा वही है जो नीचे झुककर दूसरों के पैर धोने से शुरू होती है।“
इसी भावना के साथ उन्होंने पोप बनने के बाद भी कई बार कैदियों, शरणार्थियों और गरीबों के पैर धोकर सेवा का उदाहरण दिया।

ज्यादातर पोप भव्यता और विशेष अधिकारों से जुड़े होते हैं, लेकिन फ्रांसिस गरीबों और आम जनता के पोप रहे। वे दिखावे से दूर और जमीन से जुड़े नेता थे।
उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को धर्म और सेवा के साथ जोड़ा, जिससे दुनिया भर में उन्हें एक मानवता का प्रतीक माना जाने लगा।
धार्मिक जीवन की शुरुआत
पोप फ्रांसिस का धार्मिक जीवन शुरू हुआ जब उन्होंने 1958 में जेसुइट समुदाय (Society of Jesus) में प्रवेश लिया।
जेसुइट समुदाय क्या है?
- यह कैथोलिक चर्च का एक विशेष धर्मसमूह है।
- इसकी स्थापना 16वीं शताब्दी में संत इग्नेशियस लोयोला ने की थी।
- जेसुइट्स शिक्षा, समाज सेवा, मानवाधिकार, और प्रचार कार्यों में अग्रणी माने जाते हैं।
- ये सदस्य आजीवन गरीबी, आज्ञाकारिता और शुद्धता (celibacy) की शपथ लेते हैं।
पोप फ्रांसिस ने भी यही व्रत लिया — जीवनभर गरीबों की सेवा, धर्म का पालन, और पूर्ण साधना। उन्होंने दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र में गहन अध्ययन किया। उन्हें शिक्षा, अनुशासन और साधना का सख्त प्रशिक्षण दिया गया, जिसे वे बेहद गंभीरता से निभाते रहे।

पुजारी और शिक्षक के रूप में कार्य
13 दिसंबर 1969 को, पोप फ्रांसिस को पुजारी के रूप में अभिषेक किया गया। पुजारी बनने के बाद उन्होंने शिक्षा और समाज सेवा का कार्य शुरू किया।
वे जेसुइट कॉलेज के रेक्टर (प्रधानाचार्य) भी बने और युवाओं को जीवन में ईश्वर, सेवा और नैतिकता का महत्व सिखाते रहे। उनकी सिखाई गई बातें बहुत सरल होती थीं — जैसे, “दूसरों की मदद करना ही सच्ची पूजा है।”
ईसाई समाज में पुजारी का क्या कार्य होता है?
- चर्च में प्रार्थना और उपदेश देना।
- लोगों के दुःख-दर्द में उनका मार्गदर्शन करना।
- बच्चों को धर्मशिक्षा देना।
- विवाह, बपतिस्मा (baptism) जैसे धार्मिक संस्कार कराना।
- बीमारों और जरूरतमंदों की सेवा करना।
पोप फ्रांसिस ने इन सब कार्यों को पूरी निष्ठा और सच्चाई से निभाया।
बिशप और कार्डिनल का कार्यकाल
1992 में उन्हें ब्यूनस आयर्स का सहायक बिशप नियुक्त किया गया।
1998 में वे ब्यूनस आयर्स के आर्कबिशप बन गए।
आर्कबिशप बनने के बाद, उन्होंने चर्च को गरीबों और आम जनता के करीब लाने के लिए कई बड़े कदम उठाए।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी —
सादगी: आलीशान गाड़ी की जगह बस से चलना,
समानता: ऊंचे पद के बावजूद खुद खाना बनाना और झाड़ू लगाना।
2001 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें कार्डिनल बनाया। कार्डिनल्स कैथोलिक चर्च के सबसे ऊंचे सलाहकार होते हैं और पोप का चुनाव भी वही करते हैं।
पोप बनने की ऐतिहासिक घड़ी
28 फरवरी 2013 को पोप बेनेडिक्ट XVI ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद कार्डिनलों ने वेटिकन सिटी में बैठक की, जिसे “कॉनक्लेव” (Conclave) कहते हैं।
कॉनक्लेव प्रक्रिया क्या होती है?
- सभी कार्डिनल रोम में वेटिकन के सिस्टीन चैपल में एकत्र होते हैं।
- वे गुप्त मतदान (Secret Ballot) करते हैं।
- जब नया पोप चुन लिया जाता है, तो वेटिकन की चिमनी से सफेद धुआं निकलता है — जो पूरी दुनिया को संकेत देता है कि नया पोप चुना गया है।
13 मार्च 2013 को जॉर्ज मारियो बेर्गोलियो को पोप चुना गया। उन्होंने अपने लिए नाम चुना — “फ्रांसिस“ — संत फ्रांसिस असीसी के सम्मान में, जो गरीबों और प्रकृति के प्रेमी थे।

पोप फ्रांसिस का कार्य और दृष्टिकोण
पोप फ्रांसिस के कार्यकाल की प्रमुख बातें:
1. चर्च को गरीबों के करीब लाना
पोप फ्रांसिस ने बार-बार कहा कि चर्च को “गरीबों का चर्च” बनना चाहिए। उन्होंने आलीशान जीवन से दूरी बनाई और साधारण जीवन जीते रहे।
2. पर्यावरण की रक्षा
2015 में उन्होंने “लौदातो सी” (Laudato Si) नामक विश्वप्रसिद्ध पत्र (encyclical) जारी किया, जिसमें पर्यावरण संरक्षण और पृथ्वी को बचाने का संदेश दिया।
3. शरणार्थियों के समर्थन में
उन्होंने कहा कि शरणार्थियों का स्वागत करना ईसाई कर्तव्य है। उन्होंने खुद कई बार प्रवासियों और युद्ध पीड़ितों से मिलकर सहानुभूति जताई।
4. अन्य धर्मों के साथ संवाद
पोप फ्रांसिस ने मुसलमानों, यहूदियों, हिंदुओं, बौद्धों और अन्य धर्मों के नेताओं के साथ भाईचारे और शांति के लिए कई ऐतिहासिक बैठकें कीं।
5. चर्च में सुधार
चर्च में फैले भ्रष्टाचार, यौन शोषण जैसे मुद्दों पर उन्होंने सख्त कदम उठाए। उन्होंने Vatican Bank में पारदर्शिता लाई और कई पुराने व्यवस्थागत सुधार किए।
पोप फ्रांसिस के प्रसिद्ध उद्धरण:
- “गरीबी को करीब से देखने से हमें करुणा आती है।”
- “प्रकृति को नष्ट करना, मानवता को नष्ट करना है।”
“चर्च को अस्पताल जैसा होना चाहिए — घायल आत्माओं के इलाज का स्थान।”

विश्वभर में प्रभाव और सम्मान
पोप फ्रांसिस को पूरी दुनिया में अत्यधिक सम्मान प्राप्त है। न्होंने न केवल कैथोलिक समुदाय में बल्कि अन्य धर्मों और देशों के बीच भी प्रेम और भाईचारे का संदेश फैलाया है।
उनकी सादगी और करुणा ने करोड़ों लोगों के दिलों को छुआ है।
हालांकि, उन्हें कई बार अपनी प्रगतिशील सोच के लिए आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हमेशा प्रेम और संवाद के मार्ग को ही चुना।
विश्व प्रिय पोप का शरीर त्यागना

पोप फ्रांसिस का निधन 21 अप्रैल 2025 को सुबह 7:35 बजे वेटिकन सिटी स्थित उनके निवास डोमस सैंक्ते मार्थे में हुआ। वे 88 वर्ष के थे और उनके निधन का कारण स्ट्रोक और हृदय गति रुकना बताया गया है।
उनका अंतिम संस्कार 26 अप्रैल 2025 को सेंट पीटर्स स्क्वायर में आयोजित किया गया, जिसमें लगभग 2,50,000 लोगों ने भाग लिया। इसके बाद, उनकी अंतिम यात्रा सांता मारिया माज्जोरे बेसिलिका तक की गई, जहां उन्हें सालुस पोपुली रोमानी आइकन के पास दफनाया गया।
पोप फ्रांसिस के निधन के बाद, कैथोलिक चर्च में “सेदे वैकांटे” (Sede Vacante) की स्थिति उत्पन्न हुई है, जिसका अर्थ है कि पोप का पद खाली है। अब, कार्डिनल्स की एक सभा, जिसे “कॉनक्लेव” कहा जाता है, नए पोप के चयन के लिए आयोजित की जाएगी।


अंतिम संस्कार की प्रक्रिया:
ईसाई कैथोलिक परंपरा के अनुसार:
- पोप के निधन के बाद वेटिकन में 9 दिन लगातार विशेष प्रार्थना (Novemdiales) होती है।
- पोप को विशेष पोशाक पहनाकर ताबूत में रखा जाता है।
- सेंट पीटर्स बैसिलिका में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाता है।
- दफनाने से पहले तीन ताबूतों (लकड़ी, शीशा, सीसा) में लपेटकर सुरक्षित रखा जाता है।
- फिर चर्च के किसी प्रमुख हिस्से में उन्हें दफनाया जाता है।
अब क्या होगा? (Sede Vacante और नया पोप)
- पोप के निधन के बाद “सेदे वैकांटे” (Sede Vacante) की स्थिति बनती है। यानी पोप का सिंहासन खाली है।
- फिर वेटिकन सिटी में कार्डिनल्स की सभा बुलाई जाती है।
सिस्टीन चैपल में गुप्त वोटिंग (Conclave) से नया पोप चुना जाएगा।

पोप फ्रांसिस का जीवन हमें सिखाता है कि सादगी, सेवा और प्रेम से दुनिया को बदला जा सकता है। उनकी यात्रा एक प्रेरणा है कि चाहे जीवन कितना भी साधारण क्यों न हो, यदि उद्देश्य महान हो, तो ईश्वर स्वयं मार्ग दिखाते हैं।
आज भी पोप फ्रांसिस करोड़ों लोगों के दिलों में आशा की किरण हैं, जो हमें यह विश्वास दिलाते हैं कि एक बेहतर, करुणामय और न्यायपूर्ण दुनिया संभव है। पोप फ्रांसिस का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची महानता सादगी, सेवा और प्रेम में छुपी होती है।
उनकी यात्रा एक प्रेरणा है कि चाहे जीवन कितना भी साधारण क्यों न हो, यदि उद्देश्य महान हो, तो ईश्वर स्वयं मार्ग दिखाते हैं। एक साधारण रेलवे कर्मचारी के बेटे से विश्व के सबसे बड़े धार्मिक नेता बनने तक — यह दर्शाती है कि यदि दिल में करुणा हो और जीवन में सेवा का लक्ष्य हो, तो कोई भी महान कार्य कर सकता है।
पोप फ्रांसिस आज भी हमें यह याद दिलाते हैं कि दुनिया को बदलने के लिए बड़े पद या बड़ी शक्तियाँ नहीं चाहिए, बल्कि एक करुणामय दिल चाहिए।